Sunday, May 2, 2010

राज्य में अपराध नियंतरण एक बड़ी चुनौती thi

पिछले विधान सभा के चुनाव के दौरान बिहार की जनता से मैंने एक वादा किया था कि मैं राज्‍य में कानून के शासन को पुन: बहाल करूँगा । ये कतई आसान न था । मुझे इस प्रयास में उस मिथक को तोड़ना था कि बिहार में अपराध नियंत्रण किसी के वश में नहीं है । मैं इसके लिये कृतसंकल्‍प था किन्‍तु मुझे इस बात का ख्‍याल रखना था‍ कि हमें इस उद्देश्‍य की प्रा‍प्ति कानून के दायरे में ही करनी थी । विगत में देश के विभिन्‍न भागों से आयी खबरों के कारण मुझे इस बात का इल्‍म था कि कानून-व्‍यवस्‍था के नियंत्रण के नाम पर अक्‍सर मानवाधिकारों का उल्‍लंघन होता है । इसी लिये मुझे यह सुनिश्चित करना था कि हमारी लक्ष्‍य प्राप्‍ति की दिशा में इस प्रकार की चूक न हो ।

अपराध नियंत्रण के संदर्भ में सर्वप्रथम मेरा ध्‍यान आर्म्‍स एक्‍ट के अंतर्गत दायर किये उन हजारों मामलों की तरफ गया जो वर्षों से लंबित थे । आर्म्‍स एक्‍ट के अंतर्गत तीन साल तक की सजा का प्रावधान है और इन मामलों में मुख्‍यत: राज्‍य के पुलिसकर्मी ही गवाह होते हैं । मैंने महसूस किया कि इन केसों का शीघ्र निष्‍पादन संभव है ------ अगर उनसे जुड़े गवाहों की उपस्थिति न्‍यायालयों में सुनिश्चित की जाए । हमारी सरकार ने तत्‍पश्‍चात बिहार पुलिस मुख्‍यालय में एक विशेष कोषांग की स्‍थापना ऐसे ही सारे मामलों के निष्‍पादन एवं इनसे जुड़े गवाहों को न्‍यायालयों में उपस्थित कराने के लिए की------ जिससे कानून तोड़ने वालों को समुचित सजा मिल सके ।
मैंने अधिकारियों की निर्देश दिया कि गवाहों को उपस्थित कराने के लिए वे यथासंभव न्‍यायालय से एक से अधिक तिथि की मांग न करें । मेरा ऐसा मानना है कि न्‍याय करना न्‍यायालय का कार्य है किन्‍तु सरकार का यह दायित्‍व है कि वह त्‍वरित न्‍याय के हेतु समुचित व्‍यवस्‍था करें । इस दिशा में हमारी सरकार ने न्‍यायालयों ऐसे कई गवाहों की उपस्थिति भी सुनिश्चित कराई जो झारखंड राज्‍य की स्‍थापना के बाद वहॉं चले गये थे । हमारे इन प्रयासों का जल्‍द असर हुआ और आर्म्‍स एक्‍ट के हजारों मामलों का निष्‍पादन त्‍वरित गति से हुआ । इस संदर्भ में मैं अपना-पराया भूल गया । इस बात से शीघ्र ही सभी अवगत हो गये कि कानून अपना काम करने लगी है । अपराधियों के बीच जुर्म करने के बाद कानून की पहूँच से दूर बने रहने का गुमान खत्‍म होता दिखने लगाA इन प्रयासों से आम लोगों में एक संदेश गया और उनमें सरकार के प्रति विश्‍वास जागृत हुई । उन्‍हें यह अहसास हुआ कि अब कानून तोड़ कर सजा से बचना किसी के लिये संभव न हो । तत्‍पश्‍चात राज्‍य के विभिन्‍न क्षेत्रों में बहुत ऐसे लोग, जो किसी न किसी पुराने मामलों में सजा दिलाने के लिये न्‍यायालयों में उपस्थित होना चाहते थे] अब खासे भयमुक्‍त हो कर आगे आने लगे । इससे कानून तोड़ने वालों को भी समझ में आ गया कि हमारी सरकार अपराध नियंत्रण हेतु कितनी सजग है । जिन्‍हें अपनी काले शीशे चढ़े वाहनों की खिड़कियों से बंदूके दिखाने का शौक था या फिर उन्‍हें जिन्‍हें शादी-विवाह के अवसर पर शामियाने में अपनी गैर-लाईसेंसी हथियार से गोली दागकर शक्ति प्रदर्शन की अभिरूचि थी यह समझने में कतई वक्‍त नहीं लगा । सन 2006 में मैंने लंबित मामलों के त्‍वरित निष्‍पादन हेतु एक मींटिग आहूत की जिसमें पटना उच्‍च न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश और अन्‍य न्‍यायाधीशों के अलावे सभी जिलाधीश, पुलिस अधीक्षक और लोक अभियोजक शामिल हुये । मेरी जानकारी में भारत में ये अपने प्रकार की पहली पहल थी । हमने एक 'एक्‍शन प्‍लान' के तहत हजारों लंबित मामलों की सुनवाई हेतु 'स्‍पीडी ट्रायल' की व्‍यवस्‍‍था की, जिसके कारण हजारों मुजरिमों को सजा मिली । कई मामलों की सुनवाई जेल प्रांगण में भी शुरू की गई । इन मामलों में हुये त्‍वरित कार्यवाही से अपराधियों में कानून के प्रति भय हुआ । मैंने तो बस यह संदेश दिया था कि हमारी सरकार अपराध नियंत्रण की दिशा में किसी तरह की कोताही बर्दाश्‍त नहीं करेगी । इस संदर्भ में माननीय न्‍यायालयों एवं न्‍यायिक प्रक्रिया से संबद्ध प्रबुद्ध मानस का सहयोग सराहनीय रहा । आपको भी खुशी होगी कि अब तक के हमारे शासन काल में एक भी संप्रदायिक दंगे या जातीय संघर्ष की घटना नही हुई है ।
हमनें प्रत्‍येक जिलाधिकारियों एवं पुलिस अधीक्षकों को स्‍पष्‍ट निर्देश दिया हुआ है कि समाज में शान्ति एवं सद्-भाव बरकरार करना उनकी व्‍यक्तिगत जिम्‍मेदारी है । जब हमनें बिहार में शासन की कमान संभाली तो हमनें महसूस किया कि हमारे थानों में संसाधन का नितांत अभाव है । अगर कोई नागरिक कोई शिकायत दर्ज कराने जाता था तो उससे कहा जाता था कि वह स्‍वयं कागज की व्‍यवस्‍था करे । हमारी सरकार ने थानों के रख-रखाब के लिये एक विशेष वार्षिक कोष का गठन किया । इन तमाम प्रयासों से हमें एक भय-मुक्‍त समाज बनाने में मदद मिली । वर्षों बाद लोग देर रात तक अपने परिवार के सदस्‍यों के साथ सड़क पर पु:न दिखने लगे । एक वक्‍त था जब समाज में भय इस कदर व्‍याप्‍त था कि पटना के रेस्‍त्ररां में बमुश्किल एक या दो ग्राहक रात्रि में देखे जाते थे ।

अब आलम यह है कि लोंगों को होटलों में प्रवेश के लिये कतार में लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है । यहॉं तक कि लोग परिवार सहित नाईट शो में भी सिनेमा हॉल में फिर से दिखने लगे हैं । मुझे यह कहने में लेशमात्र झिझक नहीं है कि यह परिवर्त्तन मूलत: अपराध पर नियंत्रण होने के कारण संभव हो पाया । इसका प्रभाव अन्‍य क्षेत्रों पर भी हुआ । मुझे आजकल अक्‍सर कहा जाता है कि पटना में एक फ्लैट की कीमत देश के अन्‍य विकसित शहरों की तुलना में अधिक है । ऐसा तब हुआ जब पिछले वर्ष की आर्थिक मंदी ने बाजार को हर जगह प्रभावित किया । हमारे शासन काल के पहले पंद्रह वर्षो में बिहार में व्‍यापार के क्षेत्र में विकास नहीं हुआ था । लोग अपनी संपत्ति को कम दामों में बेचकर राज्‍य छोड़कर अन्‍यत्र बसने लगे ।

बिहार में उस समय में 'डिसट्रेल सेल' के अनेक उदाहरण अभी भी मिल सकते है । आज के बदले माहौल में व्‍यापार और व्‍यवसाय जिस गति से बढ़ते दिख रहे हैं उससे मुझे विश्‍वास है कि निकट भविष्‍य में हमारी व्‍यवस्‍था खुद अपनी सचेतक व नियंत्रक की भूमिका जिम्‍मेदारी पूर्वक निवार्ह कर सकेगी । विगत दिनों में गया में एक जापानी पर्यटक से दुष्‍कर्म का मामला सामने आया। जिस दिन मुझे इसकी जानकारी मिली मुझे उस रात नींद नहीं आयी । मैंने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि अपराधियों के खिलाफ सख्‍त कार्यवाही हो और इस मामले को निपटारा त्‍वरित न्‍यायालय में हो । इस मामले में आरोपियों का गिरफ्तार किया जा चुका है और न्‍यायालय में पुलिस ने आरोप-पत्र दाखिल भी कर दिया है । इस घटना में संलग्‍न सभी अपराधियों को शीघ्र सजा मिलेगी ।

यह सच है कि समाज से अपराध का खात्‍मा पूर्णत: नहीं किया जा सकता है किन्‍तु समुचित प्रशासिनक व्‍यवस्‍था एवं समयबद्ध न्‍याय के साथ उसका नियंत्रण संभव है । खास बात यह है कि जनमानस पटल पर सुरक्षा को लेकर लकीरें न दिखें । अवाम में असुरक्षा की भावना अपराधियों को ही बल देगी ।हमारी सरकार ने अपराध के लिये समुचित सजा सुनिश्चित कर जनता का विश्‍वास जीता है । बिहार में यह अब संभव नही है कि कोई व्‍यक्ति जुर्म करके सजा से बचा रह सके ।---ऐसी हमारी दृढ़संकल्पिता है । उन्‍हें अब इस बात का पता है कि कोई है जो उन पर नजर बनाये हुये है ।

Thursday, April 29, 2010

आपके साथ संवाद प्रेरणादायक है........

मेरे पहले पोस्ट के एक सप्ताह में सैकड़ों रेस्पोंस मिले हैं सच कहूँ तो इनमे से कई मेरे लिए बेहद उपयोगी और प्रेरक हैं चाहे अररिया जिला के मो राशिद रजा हों या हैदराबाद के विश्वजीत या फिर अमेरिका से सीमा ..... इन सबने उन प्रमुख बिन्दुओं का बखूबी जिक्र किया है जिनकी बदौलत बिहार में बदलाव का माहौल सुगठित होता जा रहा है।यह मेरे लिए बहुत उत्साहजनक है कि आपलोगों ने मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना कि अपरिहार्यता को गंभीरता से लिया है। मैंने अपने पहले पोस्ट में इस योजना क़ी साथर्कता और प्रासंगिकता का जिक्र किया था।
आपके संवाद से साफ़ है कि इस योजना में राज्य में सुदूर से शहरी इलाकों में रहने वाली बच्चियों और उनके परिवारों की महत्त्वकाँक्षा को सुदृढ़ किया है। इन बाबत आपके संवाद मेरे लिए अत्यंत प्रेरणादायक हैं। आपकी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद बहुमूल्य रेस्पोंस भेजने के लिए मैं आपका आभारी हूँ । हर एक का जबाब दे पाना शायद मुमकिन न हो । सप्ताह भर में सैकड़ों रेस्पोंस के जरिये व्यक्त किये गए आपके विचार न केवल सराहनीय हैं बल्कि मेरे लिए बेहद अहम् हैं । इन्हें पढने के बाद मैं तठस्थ और अडिग महसूस कर रहा हूँ । इनमें बिहार को नई ऊँचाई तक ले जाने वाली लाखो प्रेरणाएं साफ़ निहित दिख रही हैं जो भविष्य में यह सुनिश्चित करेगी की राज्य में अवसरों की उपलब्धता लोगों की क्षमताओं और उम्मीदों को परिपुर्णित करे।सरकार के प्रयासों के जरिये बिहार में बदलाव दिख रहा है .... व् इस परिवर्तन के प्रति सकारात्मकता व्याप्त है।
बिहार और बिहारियों के प्रति इन सकारात्मक्ताओ की कहानीयाँ आपने गाँव , शहर एवम यहाँ तक की अमेरिका के प्रान्तों से भी सुनाई हैं । सरकार और प्रशासन के प्रयास अकादमिक , मिडिया एवम प्रबुद्ध लोगों के योगदान के अलावा जिस एक ख़ास चीज़ का महत्त्व इस माहौल को व्याप्त बनाने के प्रति रहा है , वो मेरी समझ से हम आम नागरिकों के बीच दिन-प्रतिदिन होने वाले बहुतेरे संवाद हैं । मैं इनकी महता को शायद कुछ-कुछ समझता हूँ...... यही वजह हो कि आज ब्लॉग के जरिये मैं आपसे मुखातिब हूँ ।लोग बिहार में आये दिन बन रही नई सड़कों , अस्पतालों , इत्यादी के साथ साथ प्रशासनिक व्यवस्था में झलक रही नई सोच व् कर्मठता , एवम आवाम में झलकते विश्वास व् सौहार्द्य को बदलते बिहार का प्रारूप मानते हैं।
हालाकि, साथ ही बिजली कि कमी और निजी क्षेत्र कि हिस्सेदारी को बढ़ावा देने जैसी कई चुनौतियों का जिक्र करना भी लाज़मी है। आपको ज्ञात होगा कि हमने कई विधुत परियोजनाओं के लिए पहल की है, व् इनकी स्थापना की प्रक्रिया विभिन्न चरणों पर है। विधुत उत्पादन इकाईयों से सम्बंधित प्रस्ताव तैयार करना और फिर इसके आधार पर परियोजना की स्थापना करने में काफी वक्त लगता है। जाहिर है की यह एक जटिल काम है। खासकर केंद्र से पहल कर coal linkage जैसी चीजों को सुनिश्चित कराना कई बार चुनौतीपूर्ण होता है।
आपको ज्ञात होगा की वर्ष 2004-2005 में हमें विरासत में विधुत की शून्य उत्पादकता मिली थी... लेकिन हमने इसे चुनौती के बतौर स्वीकार किया और इस दिशा में लगातार काम कर रहे हैं । हम सामाजिक एवम व्यवसायिक विकास में निजी और सार्वजनिक साझेदारी की संभावनाओं पर भी लगातार काम कर रहे हैं । हमने बिहार पुल निर्माण निगम जैसे सार्वजनिक उपक्रम को पुनर्जीवित कर आज एक अग्रणी की सूचि में ला खड़ा किया है। अन्तराष्ट्रीय लेवल की कई agencies के साथ हमारी साझेदारी फलीभूत होती दिखने लगी हैं।मैं हर्षित हूँ की उच्च शिक्षा को आपने भी एक बेहद महत्वपूर्ण विषय के रूप में देखा है। इस बावत , खासकर बिहार के होनहार विद्यार्थियों के सुझाव एवम विचार इंगित करते हैं कि वर्तमान परिपेक्ष में बिहार के लिए इस विषय पर काम करना बेहद प्रासंगिक है ।
बिहार सरकार ने इन चंद वर्षों में उच्च शिक्षा के विकल्पों को बढ़ाने के लिए BIT Meshra की बिहार शाखा , चाणक्य law university , चन्द्रगुप्त मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट और आर्यभट knowledge university जैसी इकाईयों की स्थापना कराई है । राज्य सरकार IIT patna और नालंदा अन्तराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना को लेकर सारे जरुरी प्रावधानों को सुनिश्चित कर चुकी है। आने वाले समय में आप ऐसी कई योजनाओं को फलीभूत होते देखेंगे ।अंत में , ब्लॉग पर लिखने के मेरे इस नए प्रयास का आपने जिस गर्मजोशी से स्वागत किया है उससे मैं पूर्णतया आश्वस्त हूँ कि मेरी भविष्य कि सोच, नीतियों और कार्यप्रारुपों को निश्चित दिशा देने में सक्षमता आएगी। एक ब्लॉगर के रूप में मेरा स्वागत करने के लिए कोटि कोटि धन्यवाद ।
मैं इन्टरनेट की पीढ़ी के वन्धुत्व को सादर स्वीकार करता हूँ।आने वाले समय में मैं अपने अनेक विचार आपसे साझा करता रहूंगा । आपके रेस्पोंस जानने के बाद मैं समझता हूँ कि आप भी बिहार में क़ानून व्यवस्था और जिम्मेदार प्रशासन को हमारी सरकार की ख़ास उपलब्धियों की सूचीं में देखते हैं। मेरे पहले ही पोस्ट पर आपके इतने सारे विचार मुझे इन्हें प्राथमिकता में रखने को प्रेरित कर रहे हैं । मेरी कोशिश है की अगले पोस्ट में मैं इन पर चर्चा करूँ ।
आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा ।
हार्दिक साधुवाद सहित ,
नीतीश

Thursday, April 22, 2010

मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना

पिछले चार वर्षों में हमारी सरकार द्वारा किए गए कई कल्याणकारी प्रयासों मे, 'मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना' मेरे दिल के बहुत करीब है। इस योजना ने बिहार की तस्वीर बदल दी है और लाखो स्कूल जाने वाली लड़कियां साइकिल चलकर कुछ हासिल करने के मकसद से स्कूल जा रही हैं । इस योजना के शुरू करने से पहले तीन साल पहले तक स्कूल जाने वाली बालिकाओं को साइकिल चलते हुए देखना पुरे बिहार ही नहीं बल्कि पटना की सरको पर भी दुर्लभ था। लेकिन अब, आप आत्मविश्वास से भरी हुई लड़कियों को साइकिल चलाते हुए राज्य मे हर जगह देख सकते हैं - गाँव की संकिरी पगडंडियों से शहर के चहल पहल वाली सडकों तक।


इस योजना के अंतर्गत आठवीं कक्षा पास करने के बाद हर स्कूल जाने वाली बच्ची को दो हज़ार (२०००) रुपये का चेक साइकिल खरीदने के लिए दिया जाता है ताकी वोह आसानी से स्कूल हर दिन जा सकें। यह कहना ग़लत नहीं होगा की इस योजना ने अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। इस योजना मे मुझे काफी संतुसटी दिलाई है, क्यूंकि इस ने लड़कियों मे पढाई छोड़ने की दर को पुरे राज्य मे काफी घटाया है।



पिछले तीन वित्तीय वर्षों के आंकड़ों पर एक नजर डालें करने के लिए इस योजना की सफलता का
अंदाज़ा लगाया जा सकता है। वर्ष 20०७-०८ मे हमारी सर्कार ने ३२.६० करोड़ रुपये १.६३ लाक स्कूल जाने वाली लड़कियों के साइकिल खरीदने मे खर्च किये, वर्ष २००८-०९ मे हम ने ५४.४३ करोड़ रुपये २.७२ लाख साइकिल खरीदने के लिए खर्च किये और वर्ष २००९-१० मे ४.३६ लाख बालिकाओं ने ८७.३३ करोड़ के बुद्गेत से साइकिल खरीदी। पिछले तीन वर्षों मे हमारी सरकर ने १७४.३६ करोड़ रुपये खर्च किये हैं, जिससे ८.७१ लाख स्कूल जाने वाली लड़कियों को साइकिल मिले हैं जो की वह लोग शिक्षा प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं। ये महज आंकड़े नहीं हैं। बल्कि एक तथ्य एक अभिपुष्टि है, वास्तव मे एक छोटी सी पहल वास्तव में एक बड़ा परिवर्तन लेन मे सक्षम है।


बिहार में साइकिल अब सामाजिक परिवर्तन का एक सत्य साधन बन गया है जो राज्य के किसी भी हिस्से में महसूस किया जा सकता है। मैंने हमेशा माना है कि किसी भी समाज मे तबतक परगति नहीं हो सकती जबतक महिलाएं परगति नहीं करती - और किसी समाज मे महिलाएं तबतक परगति नहीं कर सकती हैं जबतक वोह शिक्षित न हों।

यह योजना सही दिशा में एक छोटा सा कदम है। इस परियोजना की वजह से आज राज्य भर मे परिवर्तन की हवाएं बह रही हैं। और इसके दीर्घकालिक प्रभाव आने वाले कुछ साल में महसूस किया जाएगा. लकिन मुझे यह कहने मे संकोच नहीं है की इस योजना ने बिहार को एक जीवंत राज्य की तरह आगे बढ़ने मदद की है जो की अपनी महिलाओं को सशक्त बनाने में विश्वास रखता है। लड़कियों को शिक्षित करना उनमें से एक है.